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संगोष्ठी

1- राष्ट्रीय संगोष्ठी- ‘‘भारतीय वाङमय में विज्ञान एवं तकनीकी: अनुसंधान एवं अनुशीलन’’; दिनांंक 09 एवं 10 फरवरी, 2019 ।

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दिनांक 9 फरवरी, 2019

          अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्‍वविद्यालय ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद‌् के साथ मैपकास्ट में भारतीय वाङ‌्मय में विज्ञान और तकनीकी : अनुसंधान एवं अनुशीलन विषय पर संगोष्ठी का आयोजन का आयोजन किया। कार्यक्रम की शुरूआत मां सरस्वती के समक्ष द्वीप प्रज्जवलन से हुई। संगोष्ठी के दौरान विश्‍वविद्यालय की प्रवेश विवरणिका और अटल वार्ता पत्रिका का अतिथियों ने विमोचन किया। इसके अलावा विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संयोजन आधारभूत संकायाध्यक्ष के प्रो. प्रज्ञेश अग्रवाल ने किया। 

           संगोष्ठी की शुरूआत में विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुये अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारत में ज्ञान विज्ञान का करोड़ों साल पुराना भण्डार छिपा हुआ है। उन्होंने कहा कि वेद पुराण, उपनिषद् जीवन जीने की कला सिखाने के साथ जीवन को वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी देते हैं। प्रो. भारद्वाज ने भृगु संहिता, चरक संहिता, आर्यभट्ट का उदाहरण देते हुये भारत का विज्ञान के क्षेत्र में योगदान पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में मौजूद मुख्य अतिथि के रूप में उच्च शिक्षा मंत्री श्री जीतू पटवारी ने कहा कि हमारा प्राचीन ज्ञान आधुनिक विज्ञान का आधार है। यह हमारी पहचान है। लेकिन आज शिक्षा में भारतीय परंपरागत ज्ञान और नैतिक मूल्यों का समावेश समाज की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शून्य की खोज भारत का पेटेंट है। श्री पटवारी ने कहा कि समाज के हर क्षेत्र में शोध हो रही हैं, लेकिन उनके परिणाम को व्यवहार में लाना जरूरी है। उन्होंने बताया कि मातृभाषा हिंदी के विस्तार के साथ हिंदी विश्‍वविद्यालय के उद्देश्य के प्रति सरकार गंभीर होने के साथ पूरी तरह समर्पित है। कार्यक्रम में मौजूद इंदिरा गांधी मुक्त विश्‍वविद्यालय के प्रो. कपिल कुमार ने बताया कि भाषा हमारा गौरव है। विदेशी भाषाओं के पहले हमें अपनी मातृभाषा, परंपरा और संस्कृति को समझना होगा। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्त्रबुधे ने अपने सारस्वत उद्बोधन में कहा कि विज्ञान में भारतीय परंपरा विश्व की सबसे प्राचीन पद्यति है। उन्होंनेे कहा कि विज्ञान के सिद्धांत स्थाई नहीं हैं। इनमें लगातार शोध कार्य होता रहता है। लेकिन भारतीय ऋषि मुनियों द्वारा दिए गए सिद्धांत और ज्ञान कई वैज्ञानिक शोध का आधार हैं। उन्होंने कहा कि वर्षों से भारत के लगभग सभी घरों में तुलसी की पूजा की जाती है। आज तुलसी से कई गंभीर बीमारियों की दवाई बनाई जा रही हैं। संगोष्ठी में उपस्थित मैपकास्ट के महानिदेशक डॉ. नवीन चंद्रा ने विज्ञान के कई रहस्यों से पर्दा उठाते हुए उन्हें भारतीय ज्ञान की देन बताया। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में प्रो. संतकुमार भटनागर ने भारतीय भेषज एवं शल्य चिकित्सा विज्ञान के बारे में जानकारी दी। सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सोमदेव भारद्वाज ने अनुसंधान एवं अनुशीलन पर कार्य करने के लिए छात्रों में चेतना, जागरूकता और एकाग्रता को आवश्यक बताया। सारस्वत वक्ता श्री जयंत राधाकृष्ण गायधनी शोध आधारित ग्रंथों के संग्रहरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। समानांतर सत्र में राजीव गांधी प्रोद्योगिकी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार ने भारत के संदर्भ में तकनीकी विज्ञान और अभियांत्रिकी के महत्व पर प्रकाश डाला। रवींद्रनाथ टेगौर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एके ग्वाल ने अंतरिक्ष और खगोलशास्त्र से जुड़ी जानकारियां शोधार्थियों से साझा कीं। सत्र का संचालन डॉ. रश्मि चतुर्वेदी ने किया। कार्यक्रम के अंत में कुलसचिव प्रो. एस के पारे ने सभी अतिथियों और शोधार्थियों का आभार व्यक्त किया।

 

दिनांक 10 फरवरी, 2019

            युवा पीढ़ी को भारतीय प्राचीन ज्ञान और विज्ञान के बारे में बताना जरूरी है। सभी शैक्षणिक संस्थाओं में हिंदुस्तान के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इतिहास को सहेजकर प्रयोगशाला के रूप में विकसित किया जाना चाहिए, जिससे नई पीढ़ी को ऋषि मुनियों का ज्ञान और वैज्ञानिक सिद्धांत संबंधी जानकारी मिल सके। यह बात हिंदी विश्‍वविद्यालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि जनसंपर्क, विधि विधायी और आध्यात्म विभाग के मंत्री पीसी शर्मा ने कही। संगोष्ठी की शुरूआत माँ सरस्वती की पूजा अर्चना और सरस्वती वंदना से हुई। संगोष्ठी के संयोजक प्रो. प्रज्ञेश अग्रवाल ने सभी अतिथियों का परिचय कराया। 

           अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्‍वविद्यालय द्वारा भारतीय वाङ्मय में विज्ञान एवं तकनीकी : अनुसंधान एवं अनुशीलन विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का रविवार को समापन हुआ। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि श्री पीसी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय वाङ्मय विज्ञान एवं तकनीकी सबसे पुरानी और ऋषि मुनियों की देन है। हमारे वेदों में जो सुक्तियां लिखी हैं, वैज्ञानिक रूप से प्रासांगिक हैं। उन्होंने कहा कि हम नदियों के लिए न्यास बना रहे हैं, जो स्वच्छता, उत्खनन के साथ उनके जीर्णोद्धार पर काम करेगा। उन्होंने बताया कि परमाणु परीक्षण सबसे पहले इंदिरा गांधी जी के समय हुआ था, उसके बाद अटल जी ने कराया था। जिसके बाद भारत दुनिया के सामने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी ताकत बनकर उभरा। उन्होंने मैपकास्ट को भारतीय वाङ्मय एवं प्राचीन तकनीकी अनुसंधान लैब के लिए दो कक्ष आरक्षित करने के निर्देश दिए। मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भास्कर चौबे ने व्याख्यान में कहा कि महाभारत काल में कौरव वंशावली क्लोन का उदाहरण है। उन्होंने बताया कि अग्नि की खोज 6000 वर्ष पूर्व हुई थी। यह उदाहरण ऋग्वेद में मिलता है। सत्र के मुख्य वक्ता भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक प्रो. राकेश तिवारी ने बताया कि भारतीय सभ्यता 15 लाख वर्ष पुरानी है। इसके साक्ष्य तमिलनाडु राज्य में मिले। तकनीकी का उद्भव भारत में शालिग्राम पत्थर के रूप एवं कुल्हाणी का निर्माण 15 लाख वर्ष पूर्व भारत में हुआ। उन्होंने भारत को विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता बताया। भारत में मेहरगढ़ में 10 हजार वर्ष पूर्व धान और जौ की खेती होती थी, इसके प्रमाण प्राप्त हुये हैं। 5 हजार वर्ष पूर्व हड़प्पा सभ्यता में जल प्रबंधन और भवन निर्माण व वास्तु शास्त्र के उच्चतम प्रमाण मिले हैं।

          मैपकास्ट के महानिदेशक डॉ. नवीन चंद्रा ने अपने उद्बोधन में शोधार्थियों से भारत सरकार की कई योजनाओं की जानकारियां साझा की। संगोष्ठी में 43 शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किया, जबकि 300 विद्वानों ने सहभागिता की। अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय वाङ्मय तकनीक को यदि समझना है तो संस्कृत भाषा का ज्ञान अनिवार्य है। वेद पुराण, ग्रंथ मूलत: संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं। भारतीय वाङ्मय समझने के लिये संस्कृत की महती आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों में भारतीय वाङ्मय अध्ययन के लिए पृथक लैब व पुस्तकालय होना चाहिए, जहां शोधाथी अनुसंधान व अनुशीलन कर सकें। संगोष्ठी के अंत में आभार कुलसचिव सुनील कुमार पारे ने किया। मंच संचालन संगोष्ठी के संयोजक डॉ. प्रज्ञेश अग्रवाल ने किया।

 

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